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किसानों के अधिकार कितने साकार...?


                               सौरभ उपाध्याय
                             किसान नेता (उ.प्र.)
         इस देश में आज किसान स्वयं को हारा और बंधुआ मजदूर मानने को मजबूर है और शायद ही स्वर्गीय किसान मसीहा बाबा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत के बाद कोई नेतृत्व उन्है दिल से प्यार करता हो देश की अर्थव्यवस्था में खेती रीढ़ की हड्डी का कार्य करती है।
          देश की बड़ी आबादी खेती पर निर्भर है,लेकिन सरकार द्वारा पूंजीवादी उदारीकरण एवं वैश्वीकरण की नीतियों का अनुसरण किए जाने से यह आबादी चारों दिशाओं में अत्यंत समस्याओं से जूझ रही है। आज खेती करना घाटे का सौदा बन गया है, किसान अपने खेत में सारी जमा-पूंजी लगाकर और अनेकों बार कर्ज उठा कर दिन-रात खून-पसीना एक करके अन्न पैदा करता है लेकिन उसको लाभकारी मूल्य नहीं मिलता। 


अत्यंत महत्वपूर्ण यह है कि वही किसान द्वारा उगाई गई फसल व्यापारी के हाथ में पहुंचते ही सोना हो जाती है एवं किसान द्वारा उगाया गया आलू खरीद कर बड़ी-बड़ी कंपनियां उसका चिप्स और अन्य वस्तुये बनाती हैं, और उसे बादाम से भी महंगा बेचती हैं, इसी तरह किसान द्वारा उगाये गए फसल सस्ते मूल्य मे बिक जाते हैं लेकिन उसका बना जूस महंगे दाम में बिकता है। बिजली की किल्लत भी किसानों के सपनों को मटियामेट कर देती हैं । देश के बहुत बड़े हिस्सें में किसानों के पास अपनी फसल की सिंचाई का कोई साधन नहीं है पानी के लिए वह बरसात के पानी पर निर्भर रहते हैं। मौसम मेहरबान नहीं हुआ तो नुकसान और यदि कुछ ज्यादा मेहरबान हो गया तो भी नुकसान।
      अनेकों बार देखा गया है कि किसानों को अपनी फसल का उचित मूल्य लेने के लिए सड़कों पर उतरना पड़ता है और कई बार उन्हें जेल तक जाना पड़ता है यदि इतनी मेहनत करने पर भी लागत का उचित मूल्य ना मिले तो फिर कैसे गुजारा हो। छोटी जोत के किसान कई बार बीज खाद खरीदने के लिए व्यापारी से कर्ज उठा लेते है, कर्ज चुकाने के लिए उसी व्यापारी के पास उसके मनमाने मूल्य पर ही फसल बेचना किसानों की मजबूरी हो जाती है ।

        संकट से जूझते किसानों को सरकार से राहत की उम्मीद रहती है,किसानी घाटे का धंधा बनने के कारण किसान अपनी जमीन बेचकर शहर की ओर पलायन कर रहे हैं और अपना मालिकाना हक त्याग कर शहर में जाकर मजदूर बनने को मजबूर है।
        अक्सर देखा जाता है कि आए दिन किसान आत्महत्या करने को मजबूर है किसानों की आत्महत्या के कारणो की गहराई व संवेदनशीलता से जानने की जरूरत है और उनका निराकरण करने की जरूरत है। डॉक्टर स्वामीनाथन कमेटी के द्धारा सोपी गई रिपोर्ट के आधार पर किसान आयोग का गठन होना था सन् 2004 से 20018 तक किसान आयोग के गठन पर भारत सरकार ने बिचार नही किया।  इससे प्रतीत होता है, कि देश की सत्ता सभालने वाली सरकारो का किसानो की खुशहाली और किसान आत्म हत्याओ से कोई लेना देना नही है। राष्ट्रीय कृषक आयोग की रिपोर्ट में कहा गया कि एक किसान की औसत आय सरकारी दफ्तर में काम करने वाले चपरासी से भी कम और इसके बावजूद इससे निपटने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई। किसी ने सच ही कहा उत्तम खेती मध्यम बान अधम चाकरी भीख निदान। आज इस के उल्टा होता चला जा रहा है इसका कारण सरकार की गलत नीतियां और नियति हैं। सरकारी नीतियां लगातार किसानों को गर्त में डालने का काम कर रही हैं और पूंजीवादियों को लगातार अधिक मुनाफा देने का काम कर रही हैं।
        किसानों की समस्याओं पर गंभीरता पूर्वक चर्चा होनी चाहिए और समस्याओं के समाधान की दिशा में कदम उठाने जाने चाहिए जय जवान जय किसान का नारा भी राष्ट्र की तरफ से उनको दिए जा रहे सम्मान को ही दर्शाता है, इसके बावजूद किसानों की दयनीय दशा बरकरार है तो सवाल उठने वाजिब ही है।

                       सौरभ उपाध्याय
                    किसान नेता (उ.प्र.)

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